Insani mind se ladne ko teyar

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वैज्ञानिकों ने एक ऐसी मशीन बनाई है, जो किसी गेम को ख़ुद सीख लेती है.इस कंप्यूटर प्रोग्राम ने अब तक 49 वीडियो गेम सीख लिए हैं.इनमें से आधे में उसका प्रदर्शन किसी पेशेवर खिलाड़ी जैसा या उससेबेहतर है.

गूगल डीप माइंड से जुड़े शोधकर्ताओं ने कहा है कि ऐसा पहली बार हुआ कि एक सिस्टम ने कई तरह के जटिल काम सीखकर उनमें महारत हासिल की.डीप

माइंड के उपाध्यक्ष डॉ. हैसाबिस कहते हैं, “अभी तक ख़ुद-ब-ख़ुद सीखने वाले सिस्टम को आसान समस्याओं के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है.
पहली बार हमने इसका इसका इस्तेमाल उन जटिल कामों के लिए किया, जो इंसानों के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण हैं.”मशीन ने हराया था कास्पारोव कोखुद-ब-खुद सीखने वाली मशीन बनाने मेंटेक्नोलॉजी कंपनियां काफ़ीनिवेश कर रही हैं. गूगल ने डीप माइंड को कथित रूप से 40 करोड़ डॉलर (लगभग 2400 करोड़ रुपए) में ख़रीदा है.इससे पहले आईबीएम का शतरंज खेलने वाले कंप्यूटर डीप ब्लू ने 1997 में हुए एक बहुचर्चित मैच में विश्व चैंपियन गैरी कास्पारोव को हरा दिया था.

हालांकि इस कंप्यूटर में पहले से ही दिशा निर्देश वाले प्रोग्राम लगाए गए थे.लेकिन डीप माइंड कंप्यूटर प्रोग्राम में कोई वीडियो गेम खेलने से पहले केवल बुनियादी सूचनाएं दी जाती हैं.डॉ. हैसाबिस बताते हैं, “हमने सिस्टम को केवल स्क्रीन पर पिक्सेल की सूचनाएं दी थीं और इसे उंचा स्कोर हासिल करना था. बाक़ी इसे ख़ुद पताकरना था.”इन 49 वीडियो गेम्स में स्पेस इनवेडर से लेकर पोंग, बॉक्सिंग, टेनिस और थ्री-डी रेसिंग भी शामिल है.क़ाबिलियतइनमें से 29 खेलों में इसका प्रदर्शन एक खिलाड़ी के बराबर या उससे बेहतर था.

वीडियो पिनबॉल, बॉक्सिंग और ब्रेकआउट में इसका प्रदर्शन पेशेवर से कहीं बेहतर रहा लेकिन पैक-मैन, प्राइवेट आई और मांटेज़ुमा रिवेंज में इसे दिक़्क़तें आईं.डॉ. हैसाबिस के मुताबिक़ यह सिस्टम अनुभव के रूप में पिक्सेल से सीखता है कि क्या करना है.आप इसे एक नया गेम, नई स्क्रीन देते हैं तो यह कुछ घंटे खेलने के बादख़ुद पता लगा लेता है कि क्या करना है.यह ताज़ा शोध स्मार्ट मशीन बनाने की ओर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है.

वैज्ञानिक इंसानी दिमाग़ जैसे कंप्यूटर प्रोग्राम विकसित करने में जुटे हैं, जो तस्वीरें और ध्वनियों के विशाल आंकड़ों में से ज़रूरी सूचनाएं छांट सके.उदाहरण के लिए ऐसी मशीनें जो दसियों लाख तस्वीरें स्कैन कर सके और यहसमझ सके कि उसे इनमें से किसकी ज़रूरत है.यह दक्षता उनचालक रहित कारोंके लिए काफी महत्वपूर्ण है, जिन्हें अपने आसपास की जानकारी की ज़रूरत होती है.

आशंकाएंया ऐसी मशीनें जो इंसानी आवाज़ को समझ सकें और उनका इस्तेमाल आवाज़ पहचान करने वाले सॉफ़्टवेयर बनाने में किया जा सके.

डॉ. हैसाबिस कहते हैं, “फ़ैक्ट्रियों और घरों में काम करने वाले रोबोट के साथ एक समस्या यह है कि उनका आकस्मिक घटनाओं से पाला पड़ता है और आप हर आकस्मिक घटना की प्रोग्रामिंग नहीं कर सकते.”

वह कहते हैं, “कुछ हद तक इन मशीनों को स्वतः ज्ञान की ज़रूरत होती है, जिसे सीखा जा सकता है और उन्हें ख़ुद इन्हें सीखना पड़ता है.”

हालांकि इसे लेकर कुछ आशंकाएं भी हैं.पिछले दिसंबर में प्रोफ़ेसर स्टीफ़ेन हॉकिन्स ने कहा था कि पूरी तरह सोचने-समझने वाली मशीन का विकास पूरी मानवजाति को ख़त्म करने का कारणबन सकता है.

Posted by AKSHAY DIXIT

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