running light circuit project buy

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दोस्तो आपने बहुत बार running lights को देखा होगा आज मैं ऐसे ही एक प्रोजेक्ट के बारे मेँ बताने जा रहा हूँ रनिंग लाइट्स ऐसे light हैं जो continuous  चलती रहती हे देखने मेँ भी बहुत अच्छी लगती हे दोस्त बनाना आपको कुछ मुश्किल लगेगा

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मुश्किल को हल करने के लिए मेने अपने एक मित्र रनिंग लाइट बनाने का जिम्मा दिया तो दोस्तो उसने बहुत ही कम प्राइस में ये प्रोजेक्ट पूरा कर दिया ।

इस प्रोजेक्ट के कुल लागत 450 रुपए हे जोकि बहुत ही कम हे इस प्रोजेक्ट को खरीदने के लिए या तो  एबे पर जा सकते हे या नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर सकते हे

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‘Ethopia’ me mila pehle maanab ka jibashm

‘Ethopia’ me mila pehle maanab ka jibashm

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Scientists ने मानव के निचले जबड़े का 28 लाख साल पुराना जीवाश्म ढूंढ निकाला है.इथियोपिया में मिला हड्डियों का यह जीवाश्म, मानव की उत्पत्ति के शोधकर्ताओं के अनुमान से भी चार लाख साल पुराना है. दावा किया जा रहा है कि यह मानव जाति की सबसे पहले हुई शुरुआत के समय का जीवाश्म है.अफ़ार प्रदेश के लीडी गेरारू रिसर्च एरिया से इस जीवाश्म को एक इथोपियाई
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Pocket Money

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Posted by AKSHAY DIXIT

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HIV ko hraega bdla hua DNA

HIV ko hraega bdla hua DNA

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अमरीकी वैज्ञानिकों ने बंदरों को एचआईवी से बचाने के लिए टीकाकरण का विलक्षण प्रयोग किया है.वैक्सीन सामान्यतः प्रतिरोधक क्षमता को बीमारी के विषाणु से लड़नेके लिए तैयार करती हैं.

इसके बजाय कैलिफ़ोर्निया के स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट में शोधकर्ताओं ने बंदरों के डीएनए में बदलाव कर उनमें एचआईवी से लड़ने वाली विशेषताएं डालीं.शोधकर्ताओं ने इसे ‘एक बड़ी बात’ बताया और कहा कि वो जल्द ही इंसानों पर प्रयोग शुरू करना चाहते हैं.स्वतंत्र विशेषज्ञों का कहना है कि इस विचार पर ‘गंभीर विमर्श’ कीज़रूरत है.

सफ़लता के क़रीब. इस तकनीक में जीन थेरेपी का इस्तेमाल कर स्वस्थ कोशिका में डीएनए का एक नया खंड डाला जाता है.इसमें एचआईवी को प्रभावहीन करने वाले उपाय तैयार करने के निर्देश होते हैं, जो लगातार रक्तप्रवाह में डाले जाते हैं.जर्नल नेचर में छपे इस प्रयोग के अनुसार बंदरों को कम से कम 34 हफ़्ते तक हर प्रकार के एचआईवी से बचाया जा सका.

शोधकर्ताओं को लगता है कि इसका इस्तेमाल वर्तमान में एचआईवी ग्रस्त लोगों के लिए भी फ़ायदेमंद हो सकता है.मुख्य शोधकर्ता प्रोफ़ेसर माइकल फ़रज़ान ने बीबीसी को बताया, “अब भी कई बाधाएं हैं. मुख्यतः इसे सुरक्षा के साथ बहुत से लोगों तक पहुंचाना है.”एचआईवी वैक्सीन इसलिए सफल नहीं हो पा रहीं क्योंकि इसका विषाणु बहुत तेजी से बदलता है और लगातार लक्ष्य बदलता रहता है.

शोधकर्ता उन मरीज़ों में इसके परीक्षण करना चाहते हैं जिन्हें एचआईवीहै और वो पारंपरिक दवाओं का उपचार अगले साल के अंदर लेने में सक्षम नहीं हैं.

Friday ko honge Jupiter ke darshan

Friday ko honge Jupiter ke darshan

इस शुक्रवार को कोलकातावासी एक दुर्लभ क्षण के गवाह बनेंगे जब सौर मंडल के सबसे बड़े गृह बृहस्पति का धरती के सबसे पास से गुजरते हुए दीदार करेंगे. Read more

Barish ke bad kyu aati hai mitti se sondhi khusbu

Barish ke bad kyu aati hai mitti se sondhi khusbu

 कहां से है। इस सवाल का जवाब वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया है। दरअसल, जमीन को स्पर्श करने से पहले बारिश की बूंदों में कोई खुशबू नहीं होती, लेकिन जैसे ही यह धूलकणों से मिलती है, हम एक सोंधी सी खुशबू महसूस करते हैं।

इस खुशबू को “पेट्रिकोर” कहते हैं, जो ग्रीक भाषा के शब्द पेट्रा से बना है, जिसका अर्थ स्टोन या आईकर होता है, और माना जाता है कि यह वही तरल है, जो ईश्वर की नसों में रक्त के रूप में बहता है।

कैंब्रिज में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर कुलेन बुई ने कहा, दरअसल, पौधों द्वारा उत्सर्जित किए गए कुछ तैलीय पदार्थ व बैक्टीरिया द्वारा उत्सर्जित कुछ विशेष रसायन बारिश की बूंदों के साथ प्रतिक्रिया करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप हम ऎसी सोंधी खुशबू म हसूस करते हैं।

बारिश की बूंदें जैसे ही जमीन पर छिद्रयुक्त सतह पर गिरती हैं, वह हवा के छोटे-छोटे बुलबुलों में तब्दील हो जाती है। ये बुलबुले फूटने के पहले ऊपर की ओर बढ़ते हैं और हवा में बेहद छोटे-छोटे कणों को बाहर निकालते हैं, जिसे “एरोसॉल” कहते हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यही एरोसॉल सोंधी-सोंधी खुशबू बिखेरते हैं, जो हमारा चित्त प्रसन्न कर देती है। यह निष्कर्ष पत्रिका “नेचर कम्युनिकेशन” में प्रकाशित हुआ है।

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Girls are on top in education

Girls are on top in education

अंतरराष्ट्रीय आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि 70 फीसदी देशों में शैक्षिक उपलब्धियों के मामले में लड़कियां, लड़कों से कहीं आगे हैं। लैंगिक, राजनीति, आर्थिक और सामाजिक समानता का स्तर भिन्न होने के बावजूद वे अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। अंाकड़ों के मुताबिक गणित और विज्ञान की पढ़ाई सहित समग्र शैक्षिक उपलब्धियों में दुनियाभर में लड़के लड़कियों से पीछे हैं।

अमरीका के कोलंबिया स्थित मिसौरी विश्वविद्यालय (एमयू) और स्कॉटलैंड के ग्लासगोव स्थित ग्लासगोव विश्वविद्यालय के दल ने कहा कि कोलंबिया, कोस्टा रिका और भारत का हिमाचल प्रदेश केवल तीन ऎसे देश और क्षेत्र हैं, जहां पर लड़के, लड़कियों से आगे हैं।

एमयू में मनोविज्ञान के प्राध्यापक डेविड गैरी ने कहा, हमने 2000 से 2010 के बीच इकट्ठा किए गए आंकड़ों से पूरी दुनिया के 15 साल के 15 लाख ब च्चों की शैक्षिक उपलब्धियों का अध्ययन किया।

उन्होंने कहा, राजनीति, आर्थिक स्थिति, सामाजिक और लैंगिग समानता जैसे मुद्दे रहने और उन पर नीतियां होने के बावजूद ऎसे देशों में भी जहां पर महिलाओं की स्वतंत्रता पर काफी बंदिशें हैं, वहां भी हमने देखा कि 15 साल की लड़कियां लड़कों से बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं।

अपेक्षाकृत कम लैंगिक समानता के लिए जाने जाने वाले देश जैसे कतर, जॉर्डन और संयुक्त अरब अमीरात में शैक्षिक उपलब्धि में अंतर अपेक्षाकृत अधिक है और लड़कियों के पक्ष में है।

ग्लासगोव विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्राध्यापक जिज्सबर्ट स्टोएट ने कहा, उच्च उपलब्धि हासिल करने के मामले में अपवाद के अलावा पूरी दुनिया में लड़कों की शैक्षिक उपलब्धि लड़कियों की तुलना में कम है।

शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष में कहा कि शोध में शिक्षा नीति के महत्वपूर्ण आशयों के बारे में भी बताया गया है। इस शोधपत्र को इंटेलीजेंस नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

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